Dwadash Jyotirling Stotram | द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् देवों के देव यानि भगवान शिव का एक महामंत्र है. जिसमे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का स्मरण है | ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस Dwadash Jyotirling Stotram | द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का जाप प्रतिदिन करता है, उसके सात जन्मों के पाप का नाश हो जाता है और वह इंसान परम पुन्य का भागी होता है |
जैसा की आप सभी को पता है की भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो हमारे देश भारत के चारों दिशाओं में विराजमान हैं | जो भी इंसान इन ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करता है, उसपर भोलेनाथ यानि भगवान शिव की परम कृपा बन जाती है | परन्तु किसी कारणवश कोई इंसान इन ज्योतिर्लिंग का दर्शन नहीं कर सका है, तो ऐसे में वे लोग Dwadash Jyotirling Stotram द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का पाठ कर सकते है | इस स्त्रोत के पाठ से भी वही फल मिलता है, जो ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से मिलता है |
Contents-कंटेंट्स
Dwadash Jyotirling in hindi
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ,
श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन,
उज्जयिनी में श्री महाकाल,
ओंकारेश्वर अमलेश्वर (अमरेश्वर)
परली में वैद्यनाथ,
डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर,
सेतुबंध पर श्री रामेश्वर,
दारुकावन में श्रीनागेश्वर
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Dwadash Jyotirling Stotram
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तकका आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥1॥
श्रीशैलशृङ्गे विविधप्रसङ्गे शेषाद्रिशृङ्गेऽपि सदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेनं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ 2 ॥
जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुनको मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥ 3 ॥
संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये
जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजीको
मैं अकालमृत्युसे बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥3॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तं ओङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 4 ॥
जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये
कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट
मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,
उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥4॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसं तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ 5 ॥
जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर
सदा ही गिरिजाके साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलोंकी आराधना करते हैं,
उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥5॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 6 ॥
जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगरमें
विविध भोगोंसे सम्पन्न होकर
सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥6॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 7 ॥
जो महागिरि हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरोंद्वारा पूजित होते हैं
तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥7॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात् पातकं पाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥ 8 ॥
जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें
सह्यपर्वतके विमल शिखरपर वास करते हैं,
जिनके दर्शनसे तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥8॥
श्रीताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसङ्ख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ 9 ॥
जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी और सागरके संगमपर
अनेक बाणोंद्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं,
उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे प्रणाम करता हूँ॥9॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ 10 ॥
जो डाकिनी और शाकिनीवृन्दमें प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित होते हैं,
उन भक्तहितकारी भगवान् भीमशंकरको मैं प्रणाम करता हूँ॥10॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापबृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 11 ॥
जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक
आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,
उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥11॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ 12 ॥
जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर
समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥12॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये
इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगोंके स्तोत्रका
भक्तिपूर्वक पाठ करे,
तो इनके दर्शनसे होनेवाले फलको प्राप्त कर सकता है॥
इति श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र पूर्ण ||
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भगवान शिव के इस मन्त्र का जाप अवश्य करें | ऐसी मान्यता है की इस मन्त्र का जाप करने से सारी बाधाएं दूर हो जाती है |
अंत में ,
दोस्तों आशा करती हूँ कि आज का आर्टिकल Dwadash Jyotirling Stotram | द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्, आप सभी को पसंद आएगी | यदि आप इससे संबंधित कोई जानकारी या सुझाव देना चाहे तो प्लीज़ कमेंट करें |
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